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मेरी तीन कहानियाँ – भाग एक – बॉम्बे यात्रा का ज्ञान

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जिस मुश्किल से जनरल डिब्बे में जगह ली उतनी ही मुश्किल उसे बचा के रखना था। पर ह्म् भी बनारसी भाई काहे हार माने। अपनी सीट बचा ली पर इस चक्कर मे न तो पानी ही पीने जा सके न पेट मे उबलते द्रव्य को गन्तव्य तक पहुचा सके। वैसे तो हर डिब्बे मे खाने -पीने के लिये कुछ आ जाता है पर जहां सांस लेना दूभर हो वहा सामान क्या मच्छर की भी औकात नही थी कि अपने लिये जगह बना सके। उस समय यात्रा का जोश और अल्हड़ जवानी का बैंक बैलेंस हमे यात्रा के कष्ट से लड़ने की हिम्मत दे रहा था। अब बैंक बैलेंस ऐसी यात्रा से बचाता है।